Monday, November 16, 2009

Friday, November 13, 2009

हरी गुन गावो

हे प्राणी ! चिंतन करना है तो अभी कर लो ! रात दिन उस प्रभु का चिंतन करते रहो !



जैसे टूटे घडे से पानी बूंद बूंद होकर बहता रहता है और अंत में घडा खाली हो जाता है वेसे तुम्हार जीवन भी प्रतिदिन समाप्त हो रहा है ! की की समजाते हे he मुर्ख मनीराम तू हरी के गुण क्यों नहीं गता ? झुढे विषय भोगो में डूबकर तुमने मोतको ही भुला दिया है अभी भाई समय गया नही है कुछ भिग्दा नहीं है अभी भी तुम हरी के गुण गा सकते हो

बदल चंद्रमा से हटता है तो चंद्रमा के साक्षात् दर्शन होते हँचन्द्रम पहेले ही था वेसे ही हम आनंद सवरूप स्वयं है

Thursday, November 12, 2009

Wednesday, November 11, 2009

भलाई करो

dusro की भलाई me तुम्हारी भलाई है ! kishi की burai ना सोचो ! babul के पेड़ को pani दो to usme babul के kante ही utpan होंगे परन्तु यदि angaur के पेड़ को pani दिया जाएगा to avashay उस vursh से angur ही utpan होंगे ! जैसा काम किया जाएगा vesa ही phal मिलेगाduniya अजीब बाजार है कुछ jins yaha की sath लेneki का badala नेक है बुरे से buri bat ले meva खिला to meva मिले aram दे to aram मिलेकोई अपने ऊपर क्रोध करे to aprashan नही होना चाहिए prashanta me rahana चाहिए

Tuesday, November 10, 2009

चिंता में चिता

कभी चिंता को अपने मन मन्दिर में आने ना दो ! चिंता और चिता दोनों शब्द एक जैसे लग रहे है किंतु दोनों के बिच पुर्थ्वी आकाश का भेद है ! चिता मुर्दे को जलाकर भस्म कर देती है , लेकिन चिंता तो जीवित मनुष्य को चकनाचूर कर देती है ! चिता मुर्दे को एक बार समाप्त कर देती है किंतु चिंता रात दिन जिगर जला रही है !

चिंता वाला आदमी कभी नही समजता चिंता करने से क्या मिलता है , व्यर्थ ही स्वयम को हानि में डालता है बाकि कुछ होना नही है !

आत्मा करके न हम जन्मते है और ना मरते है ! सचमुच क़यामत अथवा प्रलय उनके लिए है जो स्वयं को देह , इन्द्रिया , मन बुद्धि और प्राण मान बेठे है !

Monday, November 9, 2009

दुःख रूप भोग

सभी भोग दुःख रूप समजो ! उनसे मन को हटावो, मन को समाजवो के हे मन ! अचलता में ही तुम्हारा सुख है ! बहार तुम्हे सुख नही मिलेगा ! अंतर्मुखी सदेव सुखी , बहार मुखी सदेव दुखी !
जैसे केलो का पेड़ देखो उसकी खाल उतारते जावो तो खाल के सिवा दूसरा कुछ भी दिखने में नही आएगा ! वेसे यह समस्त संसार अशार है ! जेसे मुर्ग तुश्ना के पानी में मुर्ग अपने को नाश कर देता है , वेसे ये संसार के भोग है ! हे मन ! भोगो की ईछा ने ही तुम्हे दिन बनाया है

प्यारे आत्मा तो सर्वदा अजर , अमर , अविनाशी , गियान व् आनंद सवरूप है , फिर शोक किसका ?