Monday, November 9, 2009

दुःख रूप भोग

सभी भोग दुःख रूप समजो ! उनसे मन को हटावो, मन को समाजवो के हे मन ! अचलता में ही तुम्हारा सुख है ! बहार तुम्हे सुख नही मिलेगा ! अंतर्मुखी सदेव सुखी , बहार मुखी सदेव दुखी !
जैसे केलो का पेड़ देखो उसकी खाल उतारते जावो तो खाल के सिवा दूसरा कुछ भी दिखने में नही आएगा ! वेसे यह समस्त संसार अशार है ! जेसे मुर्ग तुश्ना के पानी में मुर्ग अपने को नाश कर देता है , वेसे ये संसार के भोग है ! हे मन ! भोगो की ईछा ने ही तुम्हे दिन बनाया है

प्यारे आत्मा तो सर्वदा अजर , अमर , अविनाशी , गियान व् आनंद सवरूप है , फिर शोक किसका ?

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