हे प्राणी ! चिंतन करना है तो अभी कर लो ! रात दिन उस प्रभु का चिंतन करते रहो !
जैसे टूटे घडे से पानी बूंद बूंद होकर बहता रहता है और अंत में घडा खाली हो जाता है वेसे तुम्हार जीवन भी प्रतिदिन समाप्त हो रहा है ! की की समजाते हे he मुर्ख मनीराम तू हरी के गुण क्यों नहीं गता ? झुढे विषय भोगो में डूबकर तुमने मोतको ही भुला दिया है अभी भाई समय गया नही है कुछ भिग्दा नहीं है अभी भी तुम हरी के गुण गा सकते हो
बदल चंद्रमा से हटता है तो चंद्रमा के साक्षात् दर्शन होते हँचन्द्रम पहेले ही था वेसे ही हम आनंद सवरूप स्वयं है
Friday, November 13, 2009
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Guru Bin Gyan Na Upaje... Guru Bin Mite Na Bhed.. Guru Bin Shanshay na Mite.. Jay jay Jay Gurudev..
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