Tuesday, November 10, 2009

चिंता में चिता

कभी चिंता को अपने मन मन्दिर में आने ना दो ! चिंता और चिता दोनों शब्द एक जैसे लग रहे है किंतु दोनों के बिच पुर्थ्वी आकाश का भेद है ! चिता मुर्दे को जलाकर भस्म कर देती है , लेकिन चिंता तो जीवित मनुष्य को चकनाचूर कर देती है ! चिता मुर्दे को एक बार समाप्त कर देती है किंतु चिंता रात दिन जिगर जला रही है !

चिंता वाला आदमी कभी नही समजता चिंता करने से क्या मिलता है , व्यर्थ ही स्वयम को हानि में डालता है बाकि कुछ होना नही है !

आत्मा करके न हम जन्मते है और ना मरते है ! सचमुच क़यामत अथवा प्रलय उनके लिए है जो स्वयं को देह , इन्द्रिया , मन बुद्धि और प्राण मान बेठे है !

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